Monday, May 11, 2009

मैं क्या चाहता हूँ?


मैं अभी तक एक क़तरा नहीं बन पाया
पिछली बार एक application तक लिख डाली, आप सब ने पढ़ा..
अब क्या किसी मंत्री की सिफ़ारिश चाहिए??

मैं चाहता हूँ


मैं फिर से एक क़तरा बनना चाहता हूँ
जहाँ से आया था वहीं जाना चाहता हूँ
क्या हुआ जो शायर, विद्वान बन गए?
सारी मेहनत तो फ़िक्र करने में लग गयी..

सारी मज़दूरी या तो कोई अज़ीज़ ले गया
या फिर कोई मुझसे भी ज़्यादा बर्बाद..

आखिर में कोई पीठ थपथपा देता है
कोई वाह-वाह करके गंगा नहा लेता है..

और अगर कभी, किसी की हंसी का दीवाना होकर
कुछ सच्चा करना चाहा,
तो करता रहा, करता रहा..
वो हंसते रहे, हंसते रहे..

लेकिन मैं क्या था? क्या रहा?
इसीलिये..
मुझे फिर से एक क़तरा बना दो..

Monday, April 20, 2009

करकश


चाँद अब भी लाल है
एक कश तू और लगा..
कितना लंबा साल है
एक कश तू और लगा..

एक कश इस बात पे
तारे सोते हैं फुटपाथ पे
एक कश इस बात पे
रोते नहीं हालात पे

ये किसी की चाल है
एक कश तू और लगा..
कितना लंबा साल है
एक कश तू और लगा..

कश पे कश होंगे जमा
खुशनुमा होगा समा
शिक्वे भी होंगे जमा
छोड़ दे फिर ये जहाँ

सिर्फ़ मायाजाल है
एक कश तू और लगा..
कितना लंबा साल है
एक कश तू और लगा..

तेरा क्या ख़्याल है ?
एक कश तू और लगा..
कितना लंबा साल है
एक कश तू और लगा..

Wednesday, March 18, 2009

वो दरिया है



This time I didn't have to search google for my image.

उसे मालूम कहाँ वो एक दरिया है
वो दरिया,
जिसे एक नापाक़ समन्दर
जाने कितनी सदियों से तलाशता आ रहा है..

अपनी प्यास पूजता,
मौज - मौज कहकर
अपनी चोट पर हँसता रहता..
फिर भी जी न भरा
तो थोड़ा नमक लगा लिया..

उसे विश्वास नहीं
वो एक दरिया है
उसे तो ख़बर भी नहीं
कि मंजिल उसकी
तरंगों पर संतूर बजा रही है..
कानों पर सुरीली आहट
तो कभी सुरों की फ़ुहार
और एक बाली का गीलापन..

उस पर अपनी हँसी का सुरूर है,
अपनी ज़िन्दा मदहोशी पर उसे कितना गु़रूर है..

बहती, बेतहा बहती
न जाने कितना कुछ कह दिया..

उसे यक़ीन ही नहीं
उसका हर क़तरा दरिया सा निर्मल है
अब मुझे भी कहाँ ख़ुद पर
यक़ीन हुआ कभी
कहीं अगर मुलाक़ात हो
तो नाम से ज़रूर पुकारना..

Sunday, March 1, 2009

बातें कर लीं


A song for listeners...
An ode to the master...



सब ने कितनी बातें कर लीं
अपनी खाली बाहें भर लीं
फिर भी
ख़ुद को
कोई ढूँढ न पाए, न पाए, न पाए
हाय!

सब ने कितनी बातें कर लीं..

दुनिया में घुलना चाहता है
ख़्वाब सा तू खिलना चाहता है
करते - करते थक जाता है
मयखाना मन्दिर जाता है

सब ने कितनी बातें कर लीं
अपनी मोटी जेबें भर लीं
फिर भी
कहीं से भी
कोई नींद ख़रीद न पाए, न पाए, न पाए
हाय!

सब ने कितनी बातें कर लीं..

मेरा क्या है दीवाना हूँ
मुफ़लिसी का अफ़साना हूँ
जो लगता है कह देता हूँ
कुछ भी कह लो सह लेता हूँ

सब ने कितनी बातें कर लीं
मैंने भी अपनी आँखें भर लीं
फिर भी
अश्क मेरे
कोई पोंछ न पाए, न पाए, न पाए
हाय!
कितने जज़्बात दफ़्नाये
हाय!
कभी तो कोई कदम उठाये
हाय!

Tuesday, January 27, 2009

Prince of Salvation


A peaceful sleep
on a bed of stones
fearless dreams
of feasts and thrones..

Violence and prayers
cut it short
wakes up remembering
what he almost forgot..

Good Morning Prince!

Let's celebrate hunger
take off your clothes
and you'll feel younger
why do you need
a castle or cars
when you can rule from behind the bars..

Batons for entertainment
inmates at service
a trial of humour
four years of pure bliss..

Your kingdom of grace
awaits outside
hold on to your
serial number of pride..

Salutations! Oh Prince
let's take a walk
the counsellors wish for
a trecherous talk
why do you long for
salvation or freedom
here's your castle..
here's your kingdom..

Monday, January 26, 2009

फिर मैं क्यों?


New year blues...


क्या कभी किसी ने
सूरज का interview लेते हुए पूछा
"क्या तुम्हे ठीक से जलना आता है"?

क्या कभी बादल यह
सोचकर ज़्यादा बरसते हैं
कि हमें promotion मिल जाए जी बस?

क्या कभी हिमालय ने
अपना resume बना कर आस्मां को भेजा?

क्या कभी समंदर
लहरों से चाट - चाटकर
किनारे कि नमकीन चमचागिरी करता है?

क्या कभी चिड़िया, भँवरे
सुबह देर से उठते वक़्त घबराते हैं,
कि कहीं 'half day' न लग जाये?

फिर मैं क्यों?
मैं क्यों इनकी तरह नहीं सोचता?
क्या मैं इन में से एक नहीं?
क्या मुझे बनाने वाले ने किसी से रिशवत ली?