
कुछ कहाँ बाक़ी रहा मुझमे
फिरा मारा - मारा, पत्थर - पत्थर..
कुछ कभी हासिल हुआ, कोई भी मंज़र
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
एक उधारी का प्याला..
एक मदहोश उजाला..
एक सरफिरा खिलौना..
एक मह्फ़ूस बिछौना..
एक दिया मोम का गंगा के तट पर
कुछ कभी हासिल हुआ, कोई भी मंज़र
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
फटी - फटी तालियों की आहटें..
हरी, नीली, पीली, गीली चाहतें..
एक छींक घन - घन बारिश की..
एक दो अनजान गुज़ारिश भी..
और वो लिखना प्यार से दो मीठे अक्षर
कुछ कभी हासिल हुआ, कोई भी मंज़र
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..