
I could never come up with a title for this one.. Ideas welcome..
क्या सोच रहा अभिमानी
खड़ा बेतहाशा?
देख बर्बादी का अनोखा
आज तमाशा
तूने क्या क्या चाहा
मिला देख कितना
खुश होने से है आसान
दुनिया से मिटना
एक-एक कर सारे पत्ते
मुरझाये, झुलस गए
एक रात छत टपकी
अपने सारे बरस गए
गिरवी रख कर रिश्ते
त्योहारों पे दीप जले
जल बुझा आँगन बाहर
अन्दर आतिश ख़ूब पले
चिल्लाये चीखे, हँसे खिले
फिर चले गए चुप चाप
किसी ने किया हंगामा
किसी ने पश्चाताप
कोई उलझा सीधे पथ पर
किसी को वक्त ने मोड़ा
जो बचा उसको कभी
हालात ने न छोड़ा
चल अभिमानी, बढ़ आगे
डूब इस अंधकार में
कितना लाभ उठाएगा
इस अंधे व्यापार में
उठ, अब उठ
अफ़सोस क्यों करता है?
सफ़ेद कपड़े के एक टुकड़े से
क्यों इतना डरता है?
प्यासा है तो आँखें खोल
पलकें क्यों भरता है?
5 comments:
Waah. Incredible phrasing. Enlightenment might not be so bad after all :)
super.
o this is awesome. i think it is your best of what i've read till now! I love it.
How about "Insaan Ban Gaya Haivaan"? :P
the forsaken one ...
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