Monday, October 20, 2008

शेख चिल्ली


अब चल शेख चिल्ली
कितना कुछ पाया ख़्वाब में
अब सुन अपनी खिल्ली
भोलापन हर जवाब में
सच ही कहा किसी ने
आंसू भी घोल हँसी में
न कर बातें उखड़ी - उखड़ी
सारी दुनिया जलकुक्ड़ी..

अब चल शेख चिल्ली
तेरी दाल न गलती यहाँ
दम - दम हो या दिल्ली
चल हवा ले चले जहाँ
कोई दूसरा डगर पे
कुछ दूर साथ चलता
गर वो होता मंज़िल
तो कहीं निशान मिलता..

अब सोच शेख चिल्ली
तेरा सोचना था क्या
तूने खर्चे ख़्वाब सारे
तू कितना सिल गया
हाँ, सच कहा किसी ने
मिलते हैं हम बेबसी में
बसता है हम सभी में..
हँसता है हम सभी पे..
बसता है हम सभी में..
हँसता है हम सभी पे..

श.. श.. श.. शेख
शेख चिल्ली...