Sunday, July 27, 2008

परस्पर..



कुछ कहाँ बाक़ी रहा मुझमे
फिरा मारा - मारा, पत्थर - पत्थर..
कुछ कभी हासिल हुआ, कोई भी मंज़र
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..

एक उधारी का प्याला..
एक मदहोश उजाला..
एक सरफिरा खिलौना..
एक मह्फ़ूस बिछौना..
एक दिया मोम का गंगा के तट पर
कुछ कभी हासिल हुआ, कोई भी मंज़र
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..

फटी - फटी तालियों की आहटें..
हरी, नीली, पीली, गीली चाहतें..
एक छींक घन - घन बारिश की..
एक दो अनजान गुज़ारिश भी..
और वो लिखना प्यार से दो मीठे अक्षर
कुछ कभी हासिल हुआ, कोई भी मंज़र
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..
कर्ज़ा रहा वो मुझपर, परस्पर.. परस्पर..

Thursday, July 24, 2008

दिल - ए - साहिल


दिल - ए - साहिल
तेरी खता संगीन है..
लहरें नशीली
समंदर तो ग़मगीन है..

होठों पे थम कर गुज़रे
चाशनी सा सुरूर
ज़ुबान से जाना
असर तो नमकीन है..
लहरें नशीली
समंदर तो ग़मगीन है..

दिल - ए - साहिल
तेरी खता संगीन है..

कब कहाँ शब् कोई
सुबह तक जिंदा है
पलकें भारी हों चाहे
नज़र तो रंगीन है..
लहरें नशीली
समंदर तो ग़मगीन है..

दिल - ए - साहिल
तेरी खता संगीन है..

Friday, July 4, 2008

Untitled..


I could never come up with a title for this one.. Ideas welcome..

क्या सोच रहा अभिमानी
खड़ा बेतहाशा?
देख बर्बादी का अनोखा
आज तमाशा

तूने क्या क्या चाहा
मिला देख कितना
खुश होने से है आसान
दुनिया से मिटना

एक-एक कर सारे पत्ते
मुरझाये, झुलस गए
एक रात छत टपकी
अपने सारे बरस गए

गिरवी रख कर रिश्ते
त्योहारों पे दीप जले
जल बुझा आँगन बाहर
अन्दर आतिश ख़ूब पले

चिल्लाये चीखे, हँसे खिले
फिर चले गए चुप चाप
किसी ने किया हंगामा
किसी ने पश्चाताप

कोई उलझा सीधे पथ पर
किसी को वक्त ने मोड़ा
जो बचा उसको कभी
हालात ने न छोड़ा

चल अभिमानी, बढ़ आगे
डूब इस अंधकार में
कितना लाभ उठाएगा
इस अंधे व्यापार में

उठ, अब उठ
अफ़सोस क्यों करता है?
सफ़ेद कपड़े के एक टुकड़े से
क्यों इतना डरता है?
प्यासा है तो आँखें खोल
पलकें क्यों भरता है?

Tuesday, July 1, 2008

तू जैय्यो न घर रात


सखी रे, हो री सखी
तू जैय्यो न घर रात
जाड़े की बैय्याँ थामेगी तुझको
तू सुनके जैय्यो सारी बात..

तू जैय्यो न घर रात..

आंखन में मोरे अब्र जले हैं
आँसू न जाने काहे रूठन चले हैं
जतन करूँ मैं पगली चुप शरमाऊँ
पिया बिरहन की बातें किस को बताऊँ
उस पर हुई बरसात..
तू सुनके जैय्यो सारी बात

सखी रे
तू जैय्यो न घर रात..

आस पड़ोस वाले मारे हैं ताने
सखियन तू चाहे माने न माने
सर पे चंचल जोबन का इल्जाम
पूछे हैं मैय्या मोरी पी का नाम
बहते पसीजे जज़्बात..
तू सुनके जैय्यो सारी बात

सखी रे, हो री सखी
तू जैय्यो न घर रात..

Tuesday, June 24, 2008

मुझे भिगोने के लिए


मजबूर करे हालात क्यों
किसी को रोने के लिए

इस बारिश की एक बूँद है काफ़ी
मुझे भिगोने के लिए

बादल कभी निशाना न चूके
छोड़े न कोई कूचा गली

और चिंगारी आग पकड़ ले
ऐसी बैरी हवा चली

मिले बिजली की एक कड़कती लोरी
चैन से सोने के लिए

इस बारिश की एक बूँद है काफ़ी
मुझे भिगोने के लिए

मजबूर करे हालात क्यों
किसी को रोने के लिए

I thank and salute the artist for my visual..

Sunday, June 22, 2008

Worth a try


This is a love song for you...


One day,
One lavender evening
The sky was hiding behind her hair…
Satin lashes, endless eyes
A scoop of stars in a pair…

If only I could be her finger
She would slide me down the sky
Falling in love is always worth a try…

With a quiet, carefree smile
She could turn
The summer into spring…
And all parakeets in love
Would gather around her and sing…

If only I could be a parakeet
She may smile or may want to fly
Falling in love is always worth a try…

She could see
She could know
She could smell the tenderness…
There’s so much love in the air
I’m still breathing loneliness…

If only I could be a lover
She would finally stop asking why
Falling in love is always worth a try..

Thursday, June 19, 2008

ये ज़मीन ये ज़मीन


ये ज़मीन, ये ज़मीन
हकीक़त है, ज़रुरत है
ये ज़मीन, ये ज़मीन
खाली भी ख़ूबसूरत है
ये ज़मीन ये ज़मीन
कहीं तो क़दमों के रहे निशान
काफ़ी नहीं सर पे आसमान
तू चलेगा जहाँ मिलेगी वहीं
ये ज़मीन, ये ज़मीन..

इस पर पेड़ों ने शाख जमाये
तुर्की, मुग़ल, फ़िरंगी आये
जवानों ने हिफ़ाज़त की
पुजारियों ने इबादत की
इसी पर बूढों ने फिर जन्म लिया
खेलके बच्चे हुए जवान
कहीं तो क़दमों के रहे निशान
काफ़ी नहीं सर पे आसमान
तू चलेगा जहाँ मिलेगी वहीं
ये ज़मीन, ये ज़मीन..