Sunday, March 1, 2009

बातें कर लीं


A song for listeners...
An ode to the master...



सब ने कितनी बातें कर लीं
अपनी खाली बाहें भर लीं
फिर भी
ख़ुद को
कोई ढूँढ न पाए, न पाए, न पाए
हाय!

सब ने कितनी बातें कर लीं..

दुनिया में घुलना चाहता है
ख़्वाब सा तू खिलना चाहता है
करते - करते थक जाता है
मयखाना मन्दिर जाता है

सब ने कितनी बातें कर लीं
अपनी मोटी जेबें भर लीं
फिर भी
कहीं से भी
कोई नींद ख़रीद न पाए, न पाए, न पाए
हाय!

सब ने कितनी बातें कर लीं..

मेरा क्या है दीवाना हूँ
मुफ़लिसी का अफ़साना हूँ
जो लगता है कह देता हूँ
कुछ भी कह लो सह लेता हूँ

सब ने कितनी बातें कर लीं
मैंने भी अपनी आँखें भर लीं
फिर भी
अश्क मेरे
कोई पोंछ न पाए, न पाए, न पाए
हाय!
कितने जज़्बात दफ़्नाये
हाय!
कभी तो कोई कदम उठाये
हाय!

7 comments:

meraj said...

कितने जज़्बात दफ़्नाये

sub. said...

bloody hell, chatty. *gapes*

payal.k said...

beautiful:)

Saurabh Sharma said...

sundar - full time! just keep writing Abhishek

SHIVANI said...

too good is the word ..:)

Reetesh Khare said...

गीत में पिरोये हैं खालिस जज़्बात
दर्द से सुरीला भी क्या होगा कोई साज़...

(वैसे ये किन मास्टरजी को ओड दी है?)

thecorporatehippy said...

Guru Dutt aur Sahir Ludhianvi